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उ॒त नोऽहि॑र्बु॒ध्न्यो॒३॒॑ मय॑स्क॒: शिशुं॒ न पि॒प्युषी॑व वेति॒ सिन्धु॑:। येन॒ नपा॑तम॒पां जु॒नाम॑ मनो॒जुवो॒ वृष॑णो॒ यं वह॑न्ति ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uta no hir budhnyo mayas kaḥ śiśuṁ na pipyuṣīva veti sindhuḥ | yena napātam apāṁ junāma manojuvo vṛṣaṇo yaṁ vahanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। नः॒। अहिः॑। बु॒ध्न्यः॑। मयः॑। क॒रिति॑ कः। शिशु॑म्। न। पि॒प्युषी॑ऽइव। वे॒ति॒। सिन्धुः॑। येन॑। नपा॑तम्। अ॒पाम्। जु॒नाम॑। म॒नः॒ऽजुवः॑। वृष॑णः। यम्। वह॑न्ति ॥ १.१८६.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:186» मन्त्र:5 | अष्टक:2» अध्याय:5» वर्ग:4» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:24» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! हम लोग (येन) जिससे (अपाम्) जलों के (नपातम्) पतन को न प्राप्त पदार्थ को (जुनाम) बाँधें वा (मनोजुवः) मन के तुल्य वेग जिनका वे बिजुली आदि (वृषणः) वृष्टि करानेवाले (यम्) जिसको (वहन्ति) प्राप्त होते हैं वह (बुध्न्यः) अन्तरिक्षस्थ (अहिः) व्याप्तिशील मेघ (पिप्युषीव) बढ़ाती हुई वृद्धि देती उन्नति करती हुई स्त्री (शिशुम्) बालक को (न) जैसे वैसे (नः) हम लोगों को (वेति) व्याप्त होता (उत) और (सिन्धुः) नदी (मयः) सुख को (कः) करती है ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मेघ न हो तो माता के तुल्य प्राणियों की पालना कौन करे ? जो सूर्य, बिजुली और पवन न हों तो इस मेघ को कौन धारण करे ? ॥ ५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे मनुष्या वयं येनाऽपां नपातं जुनाम मनोजुवो वृषणो यं वहन्ति स बुध्न्योऽहिः पिप्युषीव शिशुं न नोऽस्मान् वेति। उतापि सिन्धुर्मयः कः ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत) अपि (नः) अस्मान् (अहिः) व्याप्तिशीलो मेघः (बुध्न्यः) अन्तरिक्षस्थः (मयः) सुखम् (कः) (शिशुम्) बालकम् (न) इव (पिप्युषीइव) यथा वर्द्धयन्ती (वेति) व्याप्नोति (सिन्धुः) नदी (येन) (नपातम्) पातरहितम् (अपाम्) जलानाम् (जुनाम) बध्नीयाम (मनोजुवः) मनसो जूर्वेग इव वेगो येषान्ते विद्युदादयः (वृषणः) वृष्टिकर्त्तारः (यम्) (वहन्ति) प्राप्नुवन्ति ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यदि मेघो न स्यात्तर्हि मातृवत्प्राणिनः कः पालयेत् ? यदि सूर्यविद्युद्वायवो न स्युस्तर्ह्ये तं को धरेत् ? ॥ ५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जर मेघ नसतील तर आईप्रमाणे प्राण्यांचे पालन कोण करील? जर सूर्य, विद्युत व वायू नसतील तर मेघांना कोण धारण करणार? ॥ ५ ॥